सपनों की दुनिया
आओ हम कहीं ऐसी जगह चलें
जहाँ दूर तक खुली फिजा हों
हरी भरी वादियाँ हों
नदियाँ और झरनें हों
चहचहाते पंछी और फूल हों
दूर तक फैली हरियाली हों
जहाँ दूर तक खुली फिजा हों
हरी भरी वादियाँ हों
नदियाँ और झरनें हों
चहचहाते पंछी और फूल हों
दूर तक फैली हरियाली हों
आओ हम कहीं ऐसी जगह चलें
जहाँ किसी के चीखने की आवाज़ ना हों
किसी भूखे बच्चे का रोना ना हों
किसी औरत की मजबूरी ना हों
किसी पर अत्याचार ना हों
जहाँ किसी के चीखने की आवाज़ ना हों
किसी भूखे बच्चे का रोना ना हों
किसी औरत की मजबूरी ना हों
किसी पर अत्याचार ना हों
कहीं भ्रष्टाचार ना हों
आओ हम कहीं ऐसी जगह चलें
जहाँ हर तरफ शान्ति सुकून हों
आपस मैं अपनापन हों
पुलकित प्रफुलित मुखड़े हों
और जहाँ हों सिर्फ
प्यार प्यार प्यार
जहाँ हर तरफ शान्ति सुकून हों
आपस मैं अपनापन हों
पुलकित प्रफुलित मुखड़े हों
और जहाँ हों सिर्फ
प्यार प्यार प्यार
प्रिय रुनझुन
ReplyDeleteस्वागत है …
बड़ी प्यारी कविता लिखी है …
आओ हम कहीं ऐसी जगह चलें
जहां हर तरफ शान्ति सुकून हो
आपस में अपनापन हो
पुलकित प्रफु्ल्लित मुखड़े हों
और जहां हो सिर्फ
प्यार प्यार प्यार !
पढ़ते पढ़ते लगा कि रुनझुन से दोस्ती कर ली जाए
कई ख़ूबसूरत मंज़र सामने होंगे …
लेकिन आपका तो कोई अता पता भी नहीं मिल रहा …
अच्छा ! अभी पहली ही पोस्ट है ! … और मेरा कमेंट ही पहला कमेंट !!
रुनझुन ! सपनों की दुनिया दूर नहीं …
शुभकामनाओं सहित
- राजेन्द्र स्वर्णकार